कल खामोशियों को छुआ था पल भर को आज शोर से हाथ छिल जाते हैं। कल खामोशियों को छुआ था पल भर को आज शोर से हाथ छिल जाते हैं।
मगर मुझे मुझसे ही वाकिफ करवाया उसने मुझे मुझसे बेहतर समझने वाली है वो मेरे जिस्म से ले के रूह ... मगर मुझे मुझसे ही वाकिफ करवाया उसने मुझे मुझसे बेहतर समझने वाली है वो मेरे...
प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर। प्रतीक और विसंगति के बीच फंसे दलित के पैर।
अनकही दास्तां पर कुछ तो हुआ अनकही दास्तां पर कुछ तो हुआ
रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी। रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी।
समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है, समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है,